छत्तीसगढ़ के 25वें स्थापना दिवस पर अमित जोगी को हाउस अरेस्ट: मिनी माता नाम विवाद में लोकतंत्र पर सवाल, शांतिपूर्ण विरोध को कुचला
रायपुर: (स्पेशल रिपोर्ट) – छत्तीसगढ़ के 25वें स्थापना दिवस के उत्सव के बीच एक ऐसी घटना घटी जो राज्य की लोकतांत्रिक परंपराओं पर गहरा सवाल खड़ी कर गई। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रमुख नेता और पूर्व विधायक अमित जोगी को मिनी माता के नाम की रक्षा के लिए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने से रोक दिया गया। सुबह जैसे ही वे अपने निवास से निकलने को तैयार हुए, रायपुर पुलिस ने उन्हें हाउस अरेस्ट कर लिया। यह कार्रवाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्योत्सव कार्यक्रम के ठीक पहले की गई, जहां नए विधानसभा भवन का उद्घाटन होना था। पुलिस ने स्पष्ट किया कि यह “सरकारी निर्देशों” के तहत किया गया, जिसमें काले कपड़े पहनकर विरोध करने वालों को अनुमति नहीं दी जा रही।
अमित जोगी, जो छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र हैं, ने इस घटना को “लोकतंत्र का काला अध्याय” करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को टैग करते हुए लिखा, “छत्तीसगढ़ के 25वें स्थापना दिवस पर काले कपड़े पहनना अब अपराध बन गया है। क्या यह वही राज्योत्सव है जो हमारी सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाता है?”
जोगी ने बताया कि वे केवल प्रतीकात्मक विरोध करने जा रहे थे – काले कपड़े पहनकर मिनी माता के अपमान का विरोध जताने के लिए। लेकिन पुलिस के दल, जिसका नेतृत्व सिटी एसपी रमाकांत साहू और टीआई दीपक कुमार पासवान कर रहे थे, ने उन्हें घर से बाहर न निकलने दिया। लगभग 30 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया, जो पूरे दिन उनके निवास की घेराबंदी में रहे।यह विवाद नए विधानसभा भवन के नामकरण से जुड़ा है, जिसे मूल रूप से ‘मिनी माता भवन’ नाम देने का प्रस्ताव था। मिनी माता छत्तीसगढ़ की आदिवासी देवी हैं, जो राज्य की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का प्रतीक हैं। राज्य सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को एक अल्टीमेटम दिया था कि वे इस नाम को सुनिश्चित करें। लेकिन उद्घाटन से ठीक पहले नाम हटा दिया गया, जिसे जोगी ने “सांस्कृतिक अपमान” बताया।
जोगी ने पहले ही नए भवन के उद्घाटन निमंत्रण पत्र को सार्वजनिक रूप से जला दिया था, जो उनके विरोध की शुरुआत थी। “यह नाम हटाना न केवल आदिवासी समुदाय का अपमान है, बल्कि छत्तीसगढ़ की आत्मा पर चोट है,” उन्होंने कहा।
Amit Jogi put under house arrest

घटना के समय जोगी ने पुलिस अधिकारियों से पूछा, “मुझे घर में क्यों रोका जा रहा है?” जवाब में एसपी साहू ने कहा, “हम सरकार के निर्देशों का पालन कर रहे हैं। किसी भी व्यक्ति को काले कपड़े पहनकर कार्यक्रम स्थल पर जाने की अनुमति नहीं है।” यह बयान संविधान के अनुच्छेद 19(1)(b) और (c) का उल्लंघन माना जा रहा है, जो शांतिपूर्ण एकत्र होने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। जोगी ने बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान का हवाला देते हुए कहा, “यह अधिकार पवित्र है। सत्ता में बैठे लोग विपरीत आवाजों को गिरफ्तार करने के बजाय उन्हें सुनने का साहस दिखाएं।”
हालांकि नजरबंदी के बावजूद, जोगी ने राज्योत्सव की भावना का सम्मान करते हुए पुलिसकर्मियों को मिठाई खिलाई। “हम किसी अप्रिय घटना से बचना चाहते थे, इसलिए घर पर ही प्रार्थना और उपवास कर रहे हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि सत्ता वाले असहमति को सहन करना सीखें,” उन्होंने कहा। यह कदम विपक्ष की परिपक्वता को दर्शाता है, जबकि सरकार की कार्रवाई को “दमनकारी” बताया जा रहा है। जोगी ने जोर देकर कहा, “यह राजनीतिक विरोध नहीं, नैतिक संघर्ष है। लोकतंत्र में काले कपड़े पहनना अपराध कैसे हो सकता है? हमारा विरोध पूरी तरह शांतिपूर्ण और प्रतीकात्मक था।”यह घटना छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक नया मोड़ ला रही है। जनता कांग्रेस (जे), जो 2018 में अजीत जोगी द्वारा बनाई गई थी, ने हमेशा आदिवासी मुद्दों पर मुखर रही है।
अमित जोगी, जो मरवाही विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं, ने पार्टी को युवा चेहरा दिया है। 2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 11 सीटें जीतीं, लेकिन अब भाजपा सरकार के खिलाफ सांस्कृतिक मुद्दों पर आंदोलन तेज कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मिनी माता विवाद आदिवासी वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है, जो राज्य की 32% आबादी है। प्रोफेसर राकेश तिवारी, छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष, ने कहा, “यह घटना सरकार की असहिष्णुता को उजागर करती है। शांतिपूर्ण विरोध को रोकना लोकतंत्र के लिए खतरा है।
जोगी का यह कदम विपक्ष को मजबूत बनाएगा।”राज्य सरकार की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, जो भाजपा के आदिवासी नेता हैं, ने राज्योत्सव को “एकता का प्रतीक” बताया, लेकिन विवाद पर चुप्पी साधे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में नए विधानसभा भवन का उद्घाटन किया और छत्तीसगढ़ की प्रगति पर बोले, लेकिन विरोध का जिक्र नहीं किया।
विपक्षी दलों ने एकजुट होकर निंदा की। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बघेल ने कहा, “यह भाजपा का तानाशाही रवैया है। मिनी माता का अपमान स्वीकार्य नहीं। हम जोगी के साथ खड़े हैं।” इसी तरह, बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट किया, “आदिवासी विरासत की रक्षा हर नागरिक का अधिकार है। सरकार दमन बंद करे।”सोशल मीडिया पर यह मुद्दा वायरल हो गया है। #SaveMiniMata और #JogiHouseArrest हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जिसमें हजारों पोस्ट हैं।
आदिवासी संगठनों ने रायपुर में धरना देने की घोषणा की है। छत्तीसगढ़ आदिवासी एकता परिषद के अध्यक्ष ने कहा, “मिनी माता हमारी मां हैं। उनका नाम हटाना हमारी पहचान मिटाने जैसा है। जोगी का संघर्ष हमारा संघर्ष है।” जोगी के समर्थकों ने घर के बाहर सांकेतिक विरोध किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें तितर-बितर कर दिया।यह घटना राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बनी। दिल्ली से कई विपक्षी नेता, जैसे राहुल गांधी, ने समर्थन जताया। गांधी ने कहा, “छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र की हत्या हो रही है।
शांतिपूर्ण विरोध को कुचलना मोदी सरकार की पुरानी आदत है।” पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने भी ट्वीट किया, “संविधान की रक्षा के लिए जोगी जैसे योद्धा जरूरी हैं।” दूसरी ओर, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने इसे “नकारात्मक राजनीति” कहा, लेकिन विवाद के मूल पर चुप्पी साध ली।मिनी माता विवाद की जड़ें गहरी हैं। छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद से आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयास हुए, लेकिन भाजपा सरकार पर “केंद्रीकरण” का आरोप लगता रहा।
2024 में नए भवन का निर्माण शुरू हुआ, और नामकरण पर बहस चली। विधानसभा अध्यक्ष धरमजीव गांधी ने नाम रखने का प्रस्ताव दिया, लेकिन केंद्र के दबाव में हटा लिया गया। जोगी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की बात कही है। “हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और जनता को जगाएंगे,” उन्होंने कहा।यह नजरबंदी न केवल जोगी को, बल्कि पूरे विपक्ष को चुनौती है। 2028 के विधानसभा चुनावों से पहले यह मुद्दा भाजपा के लिए घातक साबित हो सकता है।
आदिवासी क्षेत्रों – बस्तर, सरगुजा – में असंतोष बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे विपक्ष का गठबंधन मजबूत होगा। जोगी ने उपवास तोड़ते हुए कहा, “हम हार नहीं माने। छत्तीसगढ़ की आत्मा जागेगी।”राज्योत्सव, जो 1 नवंबर को शुरू हुआ, विकास और संस्कृति का मेला था। लेकिन यह घटना उसके पीछे छिपे तनाव को उजागर कर गई। प्रधानमंत्री का दौरा, जो 25 वर्षों का जश्न था, विवादों के साये में रहा। सरकार को अब असहमति संभालने की कला सीखनी होगी, वरना लोकतंत्र की नींव हिल सकती है। अमित जोगी का यह संघर्ष न केवल मिनी माता के नाम की रक्षा का, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया है।
भविष्य में यह कैसे आकार लेता है, यह राज्य की राजनीति तय करेगा।
